प्रेरणादायक प्रसंग

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राजा चित्रकेतु का इकलौता बेटा मर गया। वह सुंदर भी था और सद्गुणी भी । अभिभावक ही नहीं, दूसरे भी उसे असीम प्यार करते थे। मरने पर सभी शोकाकुल भी थे। राजा इस शोक से विह्वल होकर मरणासन्न होता जाता था ।

महर्षि धौम्य उधर से निकले। वे अपने समय के परमतपस्वी भी थे। शोक-समाचार सुनकर सांत्वना देने राजमहल पहुँचे। उस परिवार से उनकी घनिष्ठता भी थी। शोकातुर परिवार ने महर्षि से प्रार्थना की कि यदि मृतक जीवित नहीं हो सकता तो उसकी आत्मा को बुलाकर एक बार दर्शन तो करा दिया जाए। महर्षि ने कहा, “मैं बालक को जानता नहीं। राजा का सूक्ष्मशरीर साथ लेकर स्वर्ग जा सकता हूँ। वहाँ वे अपना पुत्र पहचान लें। यदि वह आने को रजामंद हो तो उसकी आत्मा को साथ लेते आएँ ।” चित्रकेतु प्रसन्न हुए और महर्षि के साथ परलोक के लिए चल पड़े । चित्रकेतु ने पुत्र की आत्मा पहचान ली। उससे लिपटकर रोए भी, पर बालक की आत्मा असमंजस में पड़ गई। उसने कहा, “मुझे यहाँ आकर सौ जन्मों की स्मृति जाग पड़ी है। सौ पिता और सौ माता मुझे स्मरण आते हैं। आप कौन-से जन्म के मेरे पिता हैं और आपका नाम क्या है और निवास कहाँ है?”. राजा गंभीर हो गए। उन्होंने समझ लिया कि जीवित रहने तक के ही नाते रिश्ते हैं। चित्रकेतु ने पुत्र की आत्मा से आग्रह करना उचित न समझा और शोकातुर होकर वापस लौट आए। उन्होंने राजमहल

में सब लोगों को यह विवरण सुनाया और उन्हें भी बीते को विसार देने की शिक्षा दी।

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